Saturday, August 2, 2014


अब दक्षिण पर निगाहें

आर राजगोपालन

सद के मानसून सत्र ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के भविष्य की राजनीति और उसके सम्मुख मौजूद चुनौतियों के संकेत दे दिए हैं। इससे यह भी साफ होता है कि आगामी शीत सत्र के स्वरूप और सोलहवीं लोकसभा के भविष्य के निर्धारण में दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टियों की अहम भूमिका रहेगी। लोकसभा और राज्यसभा की प्रेस गैलरी में बैठकर महीने भर लंबे मानसून सत्र का राजनीतिक विश्लेषण करते हुए एक व्यापक तस्वीर उभरती है।
सर्वप्रथम तो भारतीय जनता पार्टी का अन्नाद्रमुक, तेलगुदेशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के प्रति झुकाव दिख रहा है। दूसरी ओर भाजपा ने बेहद प्रभावी ढंग से कांग्रेस को बेअसर कर रखा है, जो अभी तक हार के सदमे से बाहर नहीं निकल पाई है। गौरतलब है कि कांग्रेस के मौजूदा 44 सांसदों में 20 सांसद दक्षिणी राज्यों से हैं। इसके अलावा भाजपा का अन्नाद्रमुक के सामने लोकसभा उपाध्यक्ष के पद का प्रस्ताव रखना भी तमिलनाडु में राजनीतिक गठजोड़ के नजरिये से महत्वपूर्ण है।
गौरतलब है कि मानसून सत्र में अब तक अन्नाद्रमुक ने कांग्रेस को जिस तरह खामोश करके रखा है, यह देखते हुए उसे भाजपा की बी टीम मानना उचित होगा। इसके अलावा यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा किस तरह दक्षिण में अपनी पहुंच बढ़ा रही है, और किस तरह उसने कांग्रेस की सीटों और उसके वोट प्रतिशत को नुकसान पहुंचाया है।
दक्षिणी की राजनीति को समझने के लिए कुछ मुद्दों को अच्छी तरह से समझना होगा। यूपीए सरकार के आखिरी दिनों में कांग्रेस आंध्र प्रदेश के विभाजन के लिए जिम्मेदार थी। इसको लेकर कांग्रेस के खिलाफ लोगों की नाराजगी का फायदा भाजपा और टीडीपी को मिला। इसी तरह लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में जातिगत समीकरणों और उनके राजनीतिक प्रभावों का लाभ भी इन दोनों पार्टियों को मिला।
लोकसभा चुनाव में इन चार राज्यों में ब्राह्मणों और ऊंची जातियों का पूरा सफाया हो गया। दरअसल रेड्डी, खम्मा, कापूस, वोक्कालिगा, लिंगायत, इझावा, नायर और गौंडर दक्षिणी राज्यों की प्रभावशाली जातियां हैं। लोकसभा चुनाव में इन सभी जातियों ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया, जिसका फायदा क्षेत्रीय दलों, और एक तरह से भाजपा को भी मिला।
दक्षिणी राज्यों की राजनीति के मद्देनजर नरेंद्र मोदी की शख्सियत का विश्लेषण करना खासा दिलचस्प है। दरअसल उन्होंने अकेले अपने दम पर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और पुदुचेरी में कांग्रेस का सफाया किया। लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान पूरे दक्षिण भारत में 54 बड़ी रैलियां करके मोदी ने यहां के मतदाताओं के दिलों में घर बनाया है।
वर्ष 2016 में तमिलनाडु और केरल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष अमित शाह इन राज्यों में भाजपा को पुनर्जीवन देने की योजना बना रहे हैं। मोदी और अमित शाह की जोड़ी कितनी लाजवाब है, यह कांग्रेस और द्रमुक के नेता बखूबी समझते हैं। अब यह जोड़ी 2016 के विधानसभा चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनाव जैसा बनाना चाहती है। उनका असल सपना ′कांग्रेस मुक्त दक्षिण भारत′ का है।
गौरतलब है कि दक्षिणी राज्यों में कुल 900 विधानसभा क्षेत्र और 130 लोकसभा सीटें हैं। अमित शाह ने दक्षिण के भाजपा नेताओं तक संदेश पहुंचा दिया है कि 2019 में वह कम से कम 50 लोकसभा सीटों और 119 विधानसभा सीटों पर फोकस करेंगे। मगर बड़ा सवाल है कि भाजपा यह करेगी कैसे। ′सबका साथ, सबका विकास′ का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी के सामने दक्षिणी राज्यों तक पहुंच बनाने के संदर्भ में अटल बिहारी वाजपेयी की शैली का उदाहरण था, जिन्होंने केरल के ओ राजगोपाल और बाद में तमिलनाडु के थिरुनावकरासर को मध्य प्रदेश से राज्यसभा में भेजा। वह चाहते थे कि राजस्‍थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से भी दक्षिण के राजनेता राज्यसभा में भेजे जाएं। यह उसी पहलकदमी का नतीजा है कि आर रामकृष्‍णा आज राजस्‍थान से राज्यसभा सांसद हैं।
वर्ष 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिस पर भाजपा की नजर है। वह वहां बेहतर प्रदर्शन करने के मद्देनजर अपनी संभावनाओं पर खासा ध्यान दे रही है। दक्षिण के जिस एक राज्य पर भाजपा अपनी नजरें गड़ाए हुए है, वह नवगठित तेलंगाना है। दरअसल नवगठित छोटे राज्यों पर भाजपा की शुरू से ही मजबूत पकड़ रही है, चाहे वह उत्तराखंड हो, छत्तीसगढ़ हो या झारखंड। ऐसे में, वह तेलंगाना में भी सत्ता में आना चाहेगी।
तेलंगाना के साथ ही भारतीय जनता पार्टी आंध्र प्रदेश में भी टीडीपी के साथ मिलकर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहेगी। रही बात तमिलनाडु की, तो वहां के मतदाता भी बारी-बारी से आने वाली जयललिता और करुणानिधि की सरकारों से त्रस्त हो चुके हैं। उनकी इस परेशानी का उल्लेख मोदी अपने भाषणों में भी तमाम बार कर चुके हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में तमिलनाडु में भाजपा और अन्नाद्रमुक के नजदीक आने की पूरी संभावना है। नरेंद्र मोदी और जयललिता के बीच का तालमेल पहले ही बेहतर ढंग से आगे बढ़ रहा है। अपने चुनावी अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी ने साफ-साफ बता दिया था कि भाजपा की रेल दक्षिण भारत में सरपट दौड़ेगी। केंद्र की सत्ता में आने के बाद जाहिर है, मोदी और उनके सहयोगी अब इसी दिशा में काम कर रहे हैं।

लेखक दक्षिण की राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं

दक्षिण की पार्टियों से मेलजोल बढ़ाना और अन्नाद्रमुक को लोकसभा उपाध्यक्ष पद का प्रस्ताव देना भाजपा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का सूचक है। कर्नाटक के अलावा तेलंगाना व आंध्र प्रदेश में भी वह सरकार बनाना चाहेगी।

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